ईरान और इज़राइल के बीच लंबे समय से चला आ रहा रणनीतिक और वैचारिक टकराव अब 2025 में एक निर्णायक सैन्य संघर्ष का रूप ले चुका है। तेहरान पर इज़राइल द्वारा की गई हवाई बमबारी और उसके जवाब में ईरान द्वारा इज़राइल के शहरों पर मिसाइल हमलों ने इस टकराव को नया आयाम दे दिया है।
अब यह संघर्ष केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं है — यह एक क्षेत्रीय और संभावित रूप से वैश्विक संकट बन गया है। इस संदर्भ में, यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है: क्या अमेरिका, इस टकराव में सीधे युद्ध के मैदान में उतरेगा?
🧭 पृष्ठभूमि: टकराव की जड़ें और ऐतिहासिक तनाव
ईरान-इज़राइल संबंधों का बिगड़ना नया नहीं है। 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान ने इज़राइल को “ज़ायनिस्ट शासन” कहकर इसकी वैधता को नकार दिया। तब से ईरान ने लेबनान की हिज़्बुल्लाह और गाज़ा की हमास जैसी ताक़तों को समर्थन देकर इज़राइल के चारों ओर रणनीतिक घेरा बना लिया।
वहीं इज़राइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताया है और समय-समय पर ईरान के वैज्ञानिकों और ठिकानों को निशाना बनाया है।
2025 के इस टकराव की जड़ें अप्रैल में हुए उस हमले में हैं, जब इज़राइल ने तेहरान के पास ईरानी रक्षा मंत्रालय की एक संवेदनशील साइट पर हमला किया, जिसमें कई अधिकारी मारे गए। इसके बाद ईरान ने मिसाइल और ड्रोन हमलों से जवाबी कार्रवाई की, जिससे स्थिति पूरी तरह बिगड़ गई।
ईरान-इज़राइल युद्ध 2025: इस्लामी क्रांति से टकराव तक
🇺🇸 अमेरिका की स्थिति: रणनीतिक समर्थन या सैन्य भागीदारी?
⚠️ अब तक की अमेरिकी भागीदारी अमेरिका ने इज़राइल को ‘बिना शर्त समर्थन’ देने की अपनी नीति दोहराई है। उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ, खुफिया जानकारी और सैटेलाइट डेटा साझा किया गया है।
अमेरिकी नौसेना के दो एयरक्राफ्ट कैरियर स्ट्राइक ग्रुप्स — USS Gerald R. Ford और USS Dwight D. Eisenhower — अब भूमध्य सागर और फारस की खाड़ी में सक्रिय हैं।
ट्रम्प का यह बयान सामान्य कूटनीतिक भाषा से अलग है — यह एक संभावित सैन्य कार्रवाई की भूमिका स्पष्ट करता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अमेरिका ने अब “ईरान के आसमान पर पूर्ण वर्चस्व” स्थापित कर लिया है।
🛰️ सैन्य संकेत: युद्ध की ओर बढ़ते कदम?
अमेरिका की हालिया गतिविधियाँ केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं हैं: F-35 और F-22 जैसे स्टील्थ फाइटर जेट्स को कुवैत और बहरीन के अमेरिकी अड्डों पर तैनात किया गया है। सैन्य सैटेलाइट्स से ईरान के मिसाइल ठिकानों की निगरानी की जा रही है।
इज़राइल के साथ एक संयुक्त युद्धाभ्यास की योजना बन चुकी है — जिसका उद्देश्य “तेज़ जवाबी कार्रवाई की तैयारियाँ” है। हालांकि अब तक अमेरिका ने सीधे युद्ध में उतरने से परहेज़ किया है, लेकिन यह स्थिति अस्थिर है और परिस्थितियाँ कभी भी बदल सकती हैं।
🧠 घरेलू राजनीति: अमेरिका के भीतर की उलझनें
डोनाल्ड ट्रम्प पर रिपब्लिकन पार्टी और रूढ़िवादी मीडिया का दबाव है कि वे ईरान को “निर्णायक सबक” सिखाएँ। वहीं डेमोक्रेटिक लॉबी, जो अब प्रभाव में नहीं है, ऐसे किसी हस्तक्षेप को वैश्विक युद्ध की चिंगारी मानती है।
इस राजनीतिक दबाव के बीच ट्रम्प एक संतुलन साध रहे हैं — वो दिखाना चाहते हैं कि वे निर्णायक नेता हैं, परंतु अपरिपक्व युद्ध में नहीं कूदना चाहते।
🌍 वैश्विक प्रभाव: एक युद्ध, कई मोर्चे
⛽ ऊर्जा संकट
ईरान के स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ से दुनिया के कुल 20% कच्चे तेल का व्यापार होता है। संघर्ष के कारण तेल की कीमतें $120 प्रति बैरल तक पहुँच गई हैं। भारत, जापान, यूरोप — सभी देश आर्थिक दबाव में आ गए हैं।
BRICS विस्तार: भारत की बदलती भूमिका और वैश्विक प्रभाव
🇮🇳 भारत की दुविधा
भारत के लिए यह स्थिति कूटनीतिक चुनौती है: इज़राइल — भारत का रक्षा साझेदार है: ईरान — ऊर्जा आपूर्तिकर्ता और क्षेत्रीय हितों के लिए अहम भारत को तटस्थ रहना, परंतु प्रभावी रणनीति अपनाना होगा विदेश मंत्रालय ने 18 जून को “संयम बरतने और संवाद के रास्ते पर लौटने” की अपील की है।
🕊️ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाने की कोशिश विफल रही है। रूस और चीन ने अमेरिका-इज़राइल के कदमों की निंदा की है, जिससे वैश्विक ध्रुवीकरण और गहरा गया है।
🔚 निष्कर्ष: क्या अमेरिका जंग में उतरेगा?
वर्तमान परिस्थिति में अमेरिका ने प्रत्यक्ष रूप से कोई हमला नहीं किया है, लेकिन उसकी सैन्य गतिविधियाँ, कूटनीतिक भाषा और राष्ट्रपति ट्रम्प के बयानों से यह साफ है कि “रेड लाइन” पार होने पर अमेरिका हस्तक्षेप से नहीं झिझकेगा। वो रेड लाइन क्या हो सकती है? इज़राइल पर बड़े पैमाने का हमला अमेरिकी नागरिकों या सैन्य अड्डों को निशाना ईरान की ओर से समुद्री व्यापार को अवरुद्ध करना
इनमें से किसी भी स्थिति में अमेरिका का सीधा सैन्य प्रवेश लगभग तय माना जा रहा है।
🧠 विशेषज्ञ दृष्टिकोण
“ट्रम्प प्रशासन युद्ध से बचना तो चाहता है, लेकिन वो झुकना नहीं चाहता। अमेरिका अब सिर्फ सहयोगी नहीं — निर्णायक बनना चाहता है।”
— जेनिफर वेस्ट, अमेरिकी विदेश नीति विशेषज्ञ