पश्चिम एशिया एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। ईरान और इज़राइल के बीच पांच दिनों से चल रहा सीधा सैन्य संघर्ष अब वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। 13 जून 2025 से शुरू हुए इस टकराव में दोनों देशों ने मिसाइलों और ड्रोन से एक-दूसरे के प्रमुख शहरों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है। इस संघर्ष की जड़ें केवल वर्तमान में नहीं हैं, बल्कि इसका आधार 1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति से शुरू होता है।
1979 की इस्लामी क्रांति: ईरान की वैचारिक पुनर्रचना
1979 में शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन के विरुद्ध जनता का आक्रोश चरम पर पहुंच गया था। पश्चिमीकरण, भ्रष्टाचार और अमेरिकी प्रभाव के खिलाफ व्यापक असंतोष ने अयातुल्ला रूहोल्ला खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति को जन्म दिया। इस क्रांति ने ईरान को एक धर्मनिरपेक्ष राजतंत्र से इस्लामी गणराज्य में बदल दिया, जहाँ सर्वोच्च नेता धार्मिक और राजनीतिक दोनों शक्तियों का केंद्र बन गया।
क्रांति के बाद शरिया कानून लागू किए गए, महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य किया गया और अमेरिका को “महान शैतान” व इज़राइल को “छोटा शैतान” घोषित किया गया। यही वह क्षण था जब ईरान की विदेश नीति में इज़राइल विरोध स्थायी रूप से स्थापित हो गया। ईरान ने फिलिस्तीन के हमास, लेबनान के हिज़्बुल्लाह और यमन के हूती विद्रोहियों जैसे समूहों को समर्थन देना शुरू किया, जिसे “प्रतिरोध की धुरी” (Axis of Resistance) कहा जाता है।
अयातुल्ला खामेनेई: क्रांति की विचारधारा का संरक्षक
1989 में खुमैनी की मृत्यु के बाद अयातुल्ला अली खामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता बने। उन्होंने इस्लामी क्रांति के विचारों को और गहराई दी और IRGC (Islamic Revolutionary Guard Corps) को एक ताकतवर सैन्य-सामरिक शक्ति में बदल दिया। खामेनेई के काल में ईरान का इज़राइल विरोध और भी स्पष्ट और आक्रामक हो गया। इज़राइल के विरुद्ध जारी “छाया युद्ध” — साइबर अटैक, वैज्ञानिकों की हत्याएं, गाजा-हिज़्बुल्लाह-हूती के माध्यम से प्रॉक्सी संघर्ष — ने इस टकराव को लगातार गर्म बनाए रखा।
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2025 का युद्ध: पर्दे से मैदान में
13 जून 2025 को इज़राइल ने “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के तहत ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमला शुरू किया। तेहरान, नटांज, क़ोम और इस्फ़हान जैसे शहरों में 330 से अधिक मिसाइलें दागी गईं। इज़राइल का दावा है कि उसने ईरान की परमाणु क्षमताओं को “निष्क्रिय” कर दिया है। जवाब में, ईरान ने भी तेल अवीव, हाइफ़ा और अशदूद जैसे इज़राइली शहरों पर 400 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और सशस्त्र ड्रोन दागे।
इस भीषण हमले में ईरान में 224 से अधिक नागरिक और सैनिक मारे गए हैं, जबकि इज़राइल ने 50 से अधिक लोगों की मौत और बड़े पैमाने पर नुकसान की पुष्टि की है। कई हवाईअड्डों, रडार केंद्रों, और बिजली संयंत्रों को भी निशाना बनाया गया है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और बढ़ता तनाव
अमेरिका ने तुरंत इज़राइल के पक्ष में खड़े होते हुए रेड सी और फारस की खाड़ी में सैन्य मौजूदगी बढ़ा दी है। रूस और चीन ने संयम बरतने की अपील की है, जबकि संयुक्त राष्ट्र और G7 देशों ने युद्धविराम की मांग की है। लेकिन जमीनी हालात बेहद नाजुक बने हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में 25% की वृद्धि देखी गई है, और शेयर बाजारों में भी गिरावट आई है।
इस युद्ध की आंच अब सीरिया, लेबनान और यमन जैसे देशों तक पहुँच रही है, जहाँ ईरानी समर्थित गुट सक्रिय हैं। खाड़ी देशों में अलर्ट जारी है और नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर रहने की सलाह दी गई है।
खामेनेई की चेतावनी: “हम सद्दाम नहीं, ईरान की रूह हैं”
इज़राइली प्रधानमंत्री द्वारा “ईरान को सद्दाम हुसैन की तरह समाप्त करने” की टिप्पणी पर खामेनेई ने तीखा जवाब देते हुए कहा, “हम सद्दाम नहीं हैं। हम ईरान की रूह हैं। हमारी जड़ों को उखाड़ना नामुमकिन है।” यह बयान इस बात का संकेत है कि ईरान पीछे हटने के मूड में नहीं है।
निष्कर्ष: क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की आहट है?
ईरान और इज़राइल के बीच यह टकराव केवल दो देशों की जंग नहीं है। यह एक वैचारिक, धार्मिक और भू-राजनीतिक संघर्ष है जिसकी चिंगारी चार दशकों से सुलग रही थी। अगर जल्द ही युद्धविराम नहीं हुआ, तो यह संघर्ष पूरे पश्चिम एशिया को युद्धभूमि में बदल सकता है और अमेरिका-ईरान सीधा टकराव भी संभव है।