नई दिल्ली, 16 जून 2025
केंद्र सरकार ने एक बार फिर ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) के प्रस्ताव को लेकर गंभीरता दिखाते हुए संसद की संयुक्त समिति को सक्रिय किया है। इस योजना के तहत लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की परिकल्पना की गई है। सरकार का दावा है कि इससे देश में राजनीतिक स्थिरता, खर्च में कटौती और नीति निर्माण में निरंतरता आएगी, जबकि विपक्ष और क्षेत्रीय दल इसे संघीय ढांचे पर हमला मान रहे हैं।
🏛️ क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ योजना?
‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएं।
वर्तमान प्रणाली में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं जिससे शासन व्यवस्था बार-बार चुनावी मोड में आ जाती है।
सरकार का मानना है कि इस प्रस्ताव से:
बार-बार लागू होने वाला आचार संहिता नहीं लगेगी
सरकारी योजनाओं पर प्रभाव नहीं पड़ेगा
खर्च और संसाधन की भारी बचत होगी
सुरक्षा बलों की तैनाती बार-बार नहीं करनी पड़ेगी
🕰️ कब तक हो सकता है लागू?
संभावना जताई जा रही है कि अगर संवैधानिक संशोधन पास होता है, तो 2034 तक इस व्यवस्था को लागू किया जा सकता है।
इसके लिए 2029 के बाद से बनने वाली कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल आंशिक रखा जाएगा ताकि अगली बार चुनाव लोकसभा के साथ हो सके।
⚠️ क्षेत्रीय दल क्यों कर रहे हैं विरोध?
🔸 1. संघीय ढांचे पर खतरा
पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों की पार्टियों का कहना है कि यह प्रस्ताव राज्य सरकारों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
विधानसभाओं के कार्यकाल को कृत्रिम रूप से घटाना या बढ़ाना, लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
🔸 2. राज्यों की भिन्नता को नजरअंदाज करना
क्षेत्रीय दलों का आरोप है कि एक ही समय पर चुनाव कराने का प्रयास भारत जैसे बहुलतावादी देश में “एक सांचे में सबको ढालने” की कोशिश है, जिससे स्थानीय मुद्दे दब सकते हैं।
🔸 3. राष्ट्रीय दलों को फायदा
उनका मानना है कि एक साथ चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो जाते हैं और क्षेत्रीय दलों की आवाज़ कमजोर हो जाती है। इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
✅ केंद्र सरकार का पक्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार संसद और मंचों से इस प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं। उनका कहना है कि बार-बार चुनाव होने से:
नीति निर्माण पर ब्रेक लगता है
विकास कार्यों में बाधा आती है
प्रशासनिक मशीनरी व्यस्त रहती है
सरकार का तर्क है कि 1951-67 तक भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ होते थे — और यह कोई नया विचार नहीं है, बल्कि पुरानी परंपरा की वापसी है।
🔍 कानूनी और तकनीकी चुनौतियाँ
संविधान के अनुच्छेद 83(2), 172(1), 85(1) और 174(1) में संशोधन करना होगा
कम से कम 14 राज्यों की विधानसभाओं की भी सहमति अनिवार्य है
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक समीक्षा की संभावना से भी इनकार नहीं
📌 निष्कर्ष
‘एक देश, एक चुनाव’ भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकता है। जहां केंद्र सरकार इसे देश की ऊर्जा और संसाधनों की बचत के रूप में देख रही है, वहीं क्षेत्रीय दल इसे राज्यों के अधिकारों और स्थानीय पहचान के लिए खतरा मानते हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार सभी पक्षों की सहमति बनाकर इस क्रांतिकारी बदलाव को लागू कर पाएगी या नहीं।