नई दिल्ली, 16 जून 2025
भारत एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता की मांग को लेकर वैश्विक मंचों पर मुखर हो गया है। हाल ही में अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे देशों ने भारत की दावेदारी का समर्थन किया, जबकि चीन और कुछ अन्य राष्ट्र अब भी चुप्पी साधे हुए हैं।
इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाज़ी तो बहुत होती रही है, लेकिन असल में यह मांग क्यों महत्वपूर्ण है, और भारत को इससे क्या मिलेगा और क्या खोना पड़ सकता है — इस पर गहराई से विचार शायद ही कहीं होता है।
🏛️ UNSC में स्थायी सदस्यता: क्यों है इतनी अहम?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद दुनिया की सबसे ताकतवर निर्णयात्मक इकाई है। इसके पाँच स्थायी सदस्य — अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन — को Veto पावर प्राप्त है।
भारत, जो 140 करोड़ की आबादी और 3.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, अब भी इस पैनल से बाहर है।
👉 सवाल ये नहीं है कि भारत को मिलनी चाहिए या नहीं — सवाल ये है कि अब तक क्यों नहीं मिली?
📈 भारत की योग्यता: आँकड़ों में ताकत
1nd सबसे अधिक आबादी वाला देश
UN Peacekeeping में Top Contributor
G20 अध्यक्षता और वैश्विक मंचों पर सक्रियता
Climate Leadership (International Solar Alliance)
AI, डिजिटल इंडिया, स्पेस टेक्नोलॉजी में अग्रणी राष्ट्र
इसके बावजूद भारत अभी भी एक “अस्थायी” मेहमान की तरह सुरक्षा परिषद की मेज़ पर बैठता है।
🇺🇸 समर्थन मिल रहा है… लेकिन अधूरा
अमेरिका: 2024 में राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया था
रूस और फ्रांस: खुले मंचों से समर्थन दे चुके हैं
ब्रिटेन: कभी सशर्त, कभी अस्पष्ट रुख
चीन: खुला विरोध नहीं, पर चुप्पी ही कूटनीतिक विरोध
👉 खास बात: P5 में से कोई एक भी देश विरोध कर दे, तो भारत की दावेदारी अधर में लटक जाती है। यही चीन की चुप्पी को और अधिक राजनीतिक बनाती है।
🧠 क्या UNSC का ढांचा अब पुराना हो चुका है?
1945 में बनाए गए सुरक्षा परिषद के ढांचे में आज के वैश्विक संतुलन का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
उस समय भारत आज़ाद भी नहीं हुआ था
अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के पास आज भी कोई स्थायी सीट नहीं
डिजिटल और आर्थिक ताकतों जैसे जापान, जर्मनी, ब्राजील, भारत जैसे देश बाहर हैं
👉 इसीलिए G4 समूह (भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील) लंबे समय से संयुक्त रूप से UNSC सुधार की मांग कर रहे हैं।
⚠️ भारत के लिए स्थायी सदस्यता क्यों ज़रूरी है?
वैश्विक फैसलों में सीधा दखल
Veto Power से राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा
दक्षिण एशिया की आवाज़ को वैश्विक मान्यता
चीन के वर्चस्व को संतुलित करने की ताकत
🔍 पर क्या यह इतनी जल्दी संभव है?
नहीं।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन के लिए:
- सभी P5 सदस्यों की सहमति
- UNGA के दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन
- और फिर राष्ट्रीय संसदों से भी रैटिफिकेशन
👉 यानी यह सिर्फ एक कूटनीतिक मांग नहीं, बल्कि लंबी रणनीतिक लड़ाई है।
🗣️ निष्कर्ष: भारत को चाहिए स्थायी नहीं, स्थायी रणनीति
भारत की दावेदारी आज नैतिक और तथ्यात्मक रूप से बेहद मज़बूत है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों में केवल योग्यता नहीं, राजनीतिक गठजोड़, लॉबिंग और स्थायी अभियान की भी ज़रूरत होती है।
अगर भारत को सचमुच यह सीट चाहिए — तो उसे केवल मांग नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय लॉबिंग तंत्र, वैचारिक दबाव और क्षेत्रीय नेतृत्व से अपनी जगह पक्की करनी होगी।