नई दिल्ली, 16 जून 2025 — पश्चिम एशिया एक बार फिर गंभीर भू-राजनीतिक संकट की गिरफ्त में है। इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव अब केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रह गया है — सैन्य टकराव की आशंका भी मंडराने लगी है। इस बढ़ते तनाव का असर न केवल उस क्षेत्र तक सीमित रहेगा, बल्कि इसकी आंच भारत जैसे देशों तक भी पहुँच सकती है, विशेषकर कच्चे तेल की कीमतों और आर्थिक स्थिरता पर।
🛢️ क्यों चिंतित हो भारत? कच्चे तेल के मोर्चे पर खतरे की घंटी
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 85% हिस्सा आयातित कच्चे तेल से पूरा करता है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों से आता है। ईरान और इज़राइल के बीच युद्ध की स्थिति बनने पर:
कच्चे तेल की वैश्विक आपूर्ति बाधित हो सकती है।
समुद्री परिवहन पर खतरा मंडरा सकता है, विशेषकर होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते।
इससे तेल की कीमतों में तेज़ी आ सकती है — जो पहले से ही $90 प्रति बैरल के आसपास मंडरा रही है।
यदि कीमतें $100 से ऊपर जाती हैं, तो इसका सीधा असर भारत के व्यापार घाटे, रुपये की विनिमय दर, और महंगाई दर पर पड़ेगा।
🧨 सैन्य तनाव: पश्चिम एशिया में युद्ध की दस्तक?
इज़राइल ने हाल के हफ्तों में ईरान की ड्रोन क्षमताओं और न्यूक्लियर इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर खुली चेतावनी दी है। वहीं, ईरान भी अपने मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता। इस गतिरोध में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं, जिससे संकट और भी जटिल हो गया है।
🇮🇳 भारत की कूटनीति: संतुलन साधने की चुनौती
भारत की ईरान और इज़राइल दोनों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध हैं:
इज़राइल भारत का प्रमुख रक्षा और तकनीकी साझेदार है।
वहीं, ईरान न केवल ऊर्जा का स्रोत है, बल्कि चाबहार पोर्ट जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट में भी साझेदार है।
इस स्थिति में भारत को बहुत संतुलित और चतुर कूटनीति की आवश्यकता है ताकि वह दोनों पक्षों के साथ अपने रिश्ते बनाए रख सके और क्षेत्रीय अस्थिरता से अपने हितों की रक्षा कर सके।
📊 आम भारतीय पर असर: जेब पर मार तय?
तेल की कीमतें बढ़ने का मतलब है:
पेट्रोल-डीज़ल महंगा
रसोई गैस महंगी
ट्रांसपोर्ट महंगा होने से दाल-सब्जी तक महंगी
महंगाई बढ़ने पर ब्याज दरों में वृद्धि, जिससे EMI भी महंगी हो सकती है
✅ निष्कर्ष:
ईरान-इज़राइल संघर्ष केवल एक क्षेत्रीय संकट नहीं है, बल्कि इसका असर भारत के आम नागरिक की जेब, व्यापार और रणनीतिक हितों तक महसूस किया जा सकता है। भारत को अभी से रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार, आयात रणनीति और कूटनीतिक पहलुओं पर सक्रियता दिखाने की ज़रूरत है।